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कविता

इच्छाओं के बीज

भारती सिंह


जमीं पर चाँद
आता है कभी-कभी
उससे झरता नूर
बहलाता है अहसासों को
देता है अब भी सुकून
कि ये दुनिया
अब भी किसी हथेली पर रखे 
एक तसव्वुर की तरह है
जहाँ कुछ नदियाँ है
कुछ पर्वत हैं
कुछ बगिया है
एक आँगन है
जहाँ अब भी
कुछ सपने बोने बाकी है
उम्मीदों की माटी में
चलो रोपे कुछ इच्छाओं के बीज
 


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